Saturday, September 24, 2011

rukhsat

मंजिल पर रहे नजर तुम्हारी हमेशा
पर मील के पत्थर का भी रहे अंदेशा
जब किसी नए मोड़ पर कदम तुम बढ़ाना
गुज़रे मुसाफिर को आखरी सलाम भी देना...
 
 
ज़िन्दगी भी अजीब से मंज़र दिखाती है
कभी गुलशन तो कभी बंजर हो जाती है
तुम इसके सराबों में ना भहक जाना
हकीकत के हर पल का हक़ पर चुका जाना..

उस गली से फिर गुज़रना मुश्किल होगा
उसकी पहचान से भी अब मुकारना होगा
हिजाब के पीछे छुपी शक्ल से इनकार कर देना
पर माज़ी की तस्वीरें सब रेज़ा रेज़ा कर जाना..

सरगोशी की बातें तो अब कहानियां हैं
ख्वाबों में ही बस मिलती रानाइयां हैं
तसव्वुर की आशनाई से किनारा कर लेना
रवानगी पर मगर महबूब को इशारा कर देना...











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