Monday, March 21, 2016

गिरां-जानी






ये चाँद की कैसी गिरां-जानी है 
घटता बढ़ता  है 
रूप रंग बदलता है 
दिखता छुपता है 
पर हर कोई  इसको इश्क़ की निशानी कहता है 

ये इश्क़ की कैसी बेईमानी है 
चढ़ता उतरता है 
ज़ख्म दे कर कुरेदता है 
दाग़, जफ़ा करता है 
पर हर कोई इसे हयात का सबब कहता है 

ये हयात की कैसी पेशानी है 
सांस आती जाती है 
धड़कन तेज़ रफ़्तार, कभी ठहरती है 
उलझती, संभलती है 
पर हर कोई इसको खुदा की नेमत कहता है 

ये हर बात कैसी बेमानी है 
चाँद मनमौजी है 
इश्क़ दिल की मनमानी है 
हयात किस्मत की बन्दगानी  है 
और ख़त्म हो भी जाए तो भी एक कहानी है 

(गिरां-जानी - misfortune, दाग़- hurt, हयात - life, पेशानी - destiny, नेमत - blessing, बन्दगानी- slavery)



Tuesday, March 15, 2016

हरारत





बहुत से लफ्ज़ हैं 
बुतों से खामोश खड़े हैं 
कोई बढ़ कर तुम तक ना पहुँचेंगे 
तुम  ख़ामोशी पढ़ लेते हो क्या ?


बारिश की बूँदें हैं 
बंद खिड़की पर कुछ लिख जाती हैं 
कोई हद्द पार कर तुम्हे नहीं छुएंगी 
तुम यूँ भी नाम हो सकते हो क्या ?


हवा के झोंके हैं 
आवारा से यूँ ही भटकते हैं 
कोई शायद उड़ते हुए तुम्हे मिल जाएँगे 
तुम हरारत क़ैद कर लेते हो क्या ?


शफ़क़ पर बिखरे अंजुम हैं 
नूर की जुबां में कुछ कहते हैं 
कोई रंजीदा से तुम्हारी ज़मीन पर भी गिरेंगे 
तुम रौशनी को गिरफ्त कर सकते हो क्या ?