Saturday, September 24, 2011

ilteja

एक पाक हमसफ़र था मेरा
तुम्हारी आशनाई की रौशनी तले
कहीं हो गया जो जुदा मुझसे
हर एक शमा बुझा  जाओ
पर मेरी वो तन्हाई लौटा जाओ

एक कोरा सा कागज़ था मेरा
तुम्हारे इकरार के जूनून से
लिखे उस पर कुछ फ़साने नए
हर एक हर्फ़ मिटा जाओ
पर मेरा वो अधूरा सा मन लौटा जाओ

एक थमा हुआ समुन्दर था मेरा
तुम्हारे एहसास के तूफ़ान से
उठे सैलाब जिसकी गहराई में
हर एक लहर दफना जाओ
पर मेरा ठहरा हुआ दिल लौटा जाओ

एक बेदाग़ सा आइना था मेरा
छिपाए हुए कई चेहरे मेरे
कुछ अंदाज़ तुमने भी देखे थे
हर एक तस्वीर मिटा जाओ
पर मेरा वो भूला अक्स लौटा जाओ

एक बेरंग सा उफक था मेरा
तुमने कुछ तारे जड़े
हमने भी शरर रौशन किये
हर एक महताब फूंक जाओ
पर मेरी वो स्याह सी रात लौटा जाओ

एक बहका हुआ अब्र था मेरा
दामन में मोती समेटे हुए
तुमने भी कुछ पिरोये थे
हर एक बूँद वो उड़ा जाओ
पर मेरा वो आवारा ख्वाब लौटा जाओ



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