Sunday, May 19, 2013

शिकस्त

एक बात से जो बात चली, आज यूँ ही 
एक बात पर वो बात ख़त्म हुई  
यूँ तो सरे-आम शुआ से रौशनी थी 
पर किसी की राह में अब रात हुई 
एक बात ख़त्म हुई ...

एक मुलाक़ात जो उंसियत बनी, आज यूँ ही 
एक बात पर वो कुर्बत फ़ुर्क़त  हुई 
यूँ तो चाहत  अब भी मुसलसल थी 
पर किसी रब्त की हकीकत से मात हुई 
एक बात ख़त्म हुई ...

एक परस्तिश की शमा रौशन थी, आज यूँ ही 
एक नसीम-इ-सहर पर वो कुर्बान हुई 
यूँ तो तूफानों से भी वो लड़ी थी 
पर किसी काफिर से आज शिकस्त हुई 
एक बात ख़त्म हुई ...

एक तिश्नगी  दिल में पली थी, आज यूँ ही 
एक दस्तक पर वो खुद ही बेघर हुई 
यूँ तो आँख अब भी ख्वाबीदा थी 
पर किसी की ज़िन्दगी मेहरूम-इ-इस्तिराहत हुई 
एक बात ख़त्म हुई ...


( शुआ =beam of light,  उंसियत= love,  कुर्बत=relationship,  कुर्बत=parting,  फ़ुर्क़त=parting  मुसलसल=continuing, रब्त =relation,  परस्तिश=devotion,  नसीम-इ-सहर=morning breeze, काफिर=infidel, शिकस्त=defeat,  तिश्नगी=desire, ख्वाबीदा = dreaming,
 मेहरूम-इ-इस्तिराहत=deprived of rest )

Wednesday, May 8, 2013

परवाज़

महताब को अब्र से ढक  कर  
हर शिहाब  को फूँक कर  
तीरगी की ओट ले  कर  
एक शब् दिल से उसे लगा कर 
देर तक ज़िन्दगी से मिला किये ...

कुर्बतों का बोझ उठाकर 
पयमानों से धोका खा कर 
रास्तों से नक्शे-पा मिटाकर 
तू चलती है क्या आस लेकर 
शमा अज़्म की रौशन किये… 

ज़माने के दस्तूर तोड़ कर 
अपनी कुछ शर्तें रख कर 
सारी गिरहें उधेड़ कर 
सभी हदों को किनारे कर 
एक दिन तो जी ले खुद के लिये… 

सब शिकवों को भुलाकर 
हर ज़ख्म को ढक  कर 
हर रंजिश को दफना कर 
डोर के सभी सिरे छोड़कर 
सजा ले दुनिया नयी अपने लिए ..

(परवाज़=flight, महताब=moonlight,  अब्र=cloud,  शिहाब = shining star, तीरगी=darkness, शब् =night,
कुर्बतों=relationships, पयमानों=promises,  नक्शे-पा=footprints, अज़्म-determination, दस्तूर=rules,  गिरहें=tangles)

Tuesday, May 7, 2013

कोहराम

 उस गोशहे  में है जो तीरगी  सी 
एक शमा थी जो ज़ुल्मत में ग़ुम गयी 
यूँ तो धुआं उठते कभी दिखा नहीं 
पर किसी की चाहत यहाँ बुझ गयी 

ये जो फर्श पर चुभते  हैं कांच के टुकड़े 
कल थे किसी की कलाई की चूड़ी में जड़े 
यूँ तो खामोश से ये टूट के बिखर पड़े 
पर कई मुरादों ने फ़ोघां भर यहाँ दम तोड़े 

चलते हो जिन बर्गे-गुल को रौंद कर 
वो सजे थे कल तक किसी की ज़ुल्फ़ पर 
यूँ तो वो बाग ही अर्सों से हुआ है बंजर 
पर बागबान को कहाँ अब फिर बहार मुयस्सर 

उड़ते हैं जो हवाओं में पुर्ज़हे से 
किसी ग़ज़ल के बेनसीब हर्फ़ हैं ये 
यूँ तो खामोश बेज़ुबान से हैं दिखते 
पर हैं किसी के दर्द-फ़रियाद के ये किस्से 


( गोशहे=corner,  तीरगी=darkness, ज़ुल्मत=darkness,  फ़ोघां=crying, बर्गे-गुल = flower petals,
 पुर्ज़हे=bits of paper, हर्फ़=letters )

दम-ब-दम

कभी आरज़ूओं ने दम भरा होगा 
और ख्वाबों को दम बख्शा होगा 
क्या करें उस बेदम वक़्त का तकाज़ा हम 
अब यूँ ही हक़ीक़त पर दम तोडना होगा 

कभी चाहत में हमारी दम रहा होगा 
ऐतबार ने उनके जिसको दम दिया होगा 
लिखें मरासिम की राख से अब क्या शेर हम 
फिर किसी गिलह का तूफ़ान दम भरता  होगा 

अब दम निकलने तक हर दम मरना होगा 
और दम भर यूँ ही हर दम जीना होगा 
किस दम करें शिकवा उस खुदा  से हम 
किसी दम उसने ही इस तक़दीर को लिखा होगा