Friday, November 9, 2012

रिहाई

आज मयखाने में है हमारी यह आखरी शाम 
कुछ देर तो  ले तू  इस तंगदिल वक़्त को थाम 
और ला पिला दे साक़ी एक आखरी जाम 
मेरी इस  अनकही महरूम कहानी के नाम ..

बुला ले, ग़म से मदहोश, सभी हमप्यालों  को 
उठा लें जाम, कर याद, बिछड़े हमख्यालों को 
ग़र्क़-इ-मय करें सब खाक़सार यतीम अरमानों को  
निसार-इ-खुमार करें  राएगान नाकाम हसरतों को 

मिलेंगे आज फिर वो गुज़रे हुए कुर्ब के मुक़ाम 
भटकते हुए फ़साने जिनको ना हासिल अंजाम  
मरासिम जो उठाते रहे ताउम्र बस इलज़ाम 
उफनते अरमान जो साहिल से दूर हुए तमाम

वो क्या समझेंगे जीने के इस मस्त अंदाज़ को 
दर्द में बादः कश होना ना आ पाया जिनको 
रिह्लत पर हमारी कह देना इस  महफ़िल को  
एक बादः परस्त था ना याद करो यूँ उस को 


( तंगदिल = selfish,  महरूम = lonely, ग़र्क़-इ-मय = drowned in alcohol, 
खाक़सार = burnt to ashes, यतीम = orphan, निसार-इ-खुमार = sacrificed to passion/intoxication, 
राएगान = useless, कुर्ब = closeness, मरासिम=relations,  उफनते = rising like the waves,  बादः कश= intoxicated, रिह्लत=departure/demise,  बादः परस्त = drunkard)