Thursday, October 30, 2014

सइयारा

ज़िन्दगी की ख़ामोश ख़ल्वत में 
बिना किसी इशारे या ताक़ीद के 
जब्र से नहीं, हक़ से आ जाता है 
और सिर्फ सवाल बख्श जाता है 

उक़्दह कहें या फिर मरहलह उसे 
अजनबी ना हमदम कह सकें जिसे 
अजीब सी' कुछ यह वाबतगी है 
हादसा या फिर खुश क़िस्मती है 

चंद लम्हें क़ैद हैं बस इस रब्त में 
जो पाबन्द नहीं अब आज़ादी के 
हर मरासिम का अपना वजूद है 
और एहतेसाब अब सिर्फ फ़ुज़ूल है 

खुदा की इस अज़ीम क़ायनात से 
आवारगी में कुछ हद जाना है जिसे 
हमें बस कुछ यह वज़ाहत गवारा है 
इस अर्श पर वो इक गुमराह सइयारा है 


(सइयारा= lonely planet,  ख़ल्वत=solitude,  ताक़ीद=warning, उक़्दह=enigma, मरहलह=problem, 
वाबतगी=connection, एहतेसाब=fight,conflict, वज़ाहत=explanation,  अर्श=sky)

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