Thursday, August 30, 2012

इत्तिहाद

अब्र की क़ैद तोड़ पानी कुछ ऐसे बरसा,
जैसे सदियों से हो रिहाई को वो तरसा ..
आज़ादी का जश्न कुछ इस तरह मनाया, 
किसी के ख्वाबों को उम्मीद से नहलाया ..
किसी के आंसुओं को हलावत से तर किया ,
कुछ सुलगते ज़ख्मों को सुकून से नम किया .. 
और हमने उसे फिर थक कर नदी में गिरते देखा,  
मानों वहां ख़त्म हुई हो उसकी आवारगी की रेखा ..
किसी गुमराह का हो मंजिल से वस्ल जैसे, 
समा गया आजिज़ आबे बारां आब-जू में ऐसे .. 


( इत्तिहाद= union, हलावत = sweetness, आजिज़ = helpless, आबे बारां = rain, आब-जू = river)

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