Monday, August 1, 2016

अहबाब





आसमान ने अपनी काली चादर उतार फेंकी है 
और उसके सारे घाव रिस रहे हैं 
बड़ी शिद्दत से छुपा के रखा था उसने अपने ग़म को 
अब वो सब बेज़ब्त से बरस रहे हैं 

ज़मीन इनकी नमी को अपनी झोली में भर रही है 
और शज़र सारे चश्म-ए-नम हैं 
बड़ी मुद्दत से बादलों ने नियाज़ के रखा था जिनको 
अब ये ज़ार ज़ार बेक़ाबू बह रहे हैं 

हमारी तहम्मुल भी सब्र की संग-ए-दर पार कर रही है 
और अरमान  कल्ब  के रवान हैं 
बड़ी हिफ़ाज़त से दिल-ए-गोशह में क़ैद किया था जिनको 
अब ये बेसाख़्ताह रक़्स कर रहे हैं 

दुनिया सिर्फ इस नम झड़ी से शराबोर हो रही है 
और सब आफ़्ताब के इंतज़ार में हैं 
बड़ी हिमाक़त से हमने चुन लिया है हर एक अब्र को 
अब वो इस तन्हाई के अहबाब हो गए हैं 

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