Saturday, September 15, 2012

मसाफ़त

अब उनकी बज़्म में एक शमा कम जलेगी
पर उनकी जज़्ब में ये आतिश ताउम्र  रहेगी 
ना  सही उनको इल्म इस आशनाई का तो क्या 
ये हरारत यूँ ही खामोश  सुलगती रहेगी 

हमसे कुर्ब का कारोबार हो ना सकेगा 
उनसे हुजूमे  किनारा हो ना सकेगा 
ना सही साहिल से वस्ल की इनायत तो क्या 
ये सफीना मौजों पर यूँ ही भटका करेगी 

चाहत का सौदा उनसे जो सीखा होता 
तो  हमारे जज़्बातों  पर भी पर्दा  होता 
ना सही उस बाज़ार में इसकी कीमत तो क्या 
ये बे-नियाज़ आशिक़ी यूँ ही नीलाम हुआ करेगी 

इस दिल के दरीचों से महताब ने मुह मोड़ लिया 
आफताब ने भी अब्र का कफ़न ओढ़ लिया 
ना सही ज़िया से अब कोई राबता तो क्या 
मह्र की उस्तुवार लौ यूँ ही मुसलसल रौशन रहेगी 

हमे ये मुहाल सफ़र तन्हा पार करना होगा 
हर मोड़ पर बे-रहबर राहगुज़र को चुनना होगा 
ना सही अर्श-ओ-फर्श में मंजिल का दीदार तो क्या 
सबा से शफ़क़ तक यूँ ही मसाफ़त जारी रहेगी 


(मसाफ़त = journey,  बज़्म = gathering, जज़्ब = allurement, आतिश = fire,  इल्म = awareness, 
 हरारत = passion, कुर्ब = closeness, साहिल = shore, वस्ल = union, इनायत = grace, सफीना = boat, बे-नियाज़  = carefree,  दरीचों = windows,  महताब = moonlight, आफताब = sun, अब्र = clouds, ज़िया = light, राबता = relationship, मह्र = love, उस्तुवार = strong,  मुसलसल = continuous,  मुहाल = difficult,  बे-रहबर = without a guide, अर्श-ओ-फर्श = sky and earth, सबा = dawn, शफ़क़ = dusk,  मसाफ़त = journey)

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