Friday, December 30, 2011

saraab...

इस सफ़र का मुक़म्मल अंजाम नहीं तो क्या
ये कारवाँ इत्त्फाकन उस गली से गुज़रा तो सही

उनकी महफ़िल में अब हम अजनबी तो क्या
रिफाक़त की उम्रे गुरेज़ाँ से वाकिफ हुए तो सही

उनकी जानिब अब लफ्ज़ किसी और के तो क्या
हमें अर्जे हालात नहीं, ख़ामोशी की बहाली तो सही

आईना चूर हुआ, अक्स बेशक्ल हुआ तो क्या
चंद लम्हात को  हम खुद से मुखातिब हुए तो सही

वो जो हमें सह़ाब लगे, सराबे सहरा निकले तो क्या
खुश्क दरिया में लहू बहा सफीनों को साहिल दिया तो सही



(रिफाक़त = friendship, उम्रे गुरेज़ाँ = short life, बहाली = freedom, मुखातिब = face to face, सह़ाब = clouds,
सराब = mirage , सहरा = desert, सफीना= boat)





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