Sunday, December 4, 2011

Khalish..

सारे रिश्ते छूट जाएँ भी तो
दर्द से तर्के मरासिम मुमकिन नहीं ?

वफ़ाए तिश्नगी से बहल जाएँ भी तो
वक्ते दैरीना से मजबूर कब दिलगीर नहीं?

ग़म पे पिन्दारे शिकस्त का गुमान जो
आँधियों पे शमा की सक़त की बस काविश ही?

इनागीर ने बख्शी तारीके पारीना जो
ये चश्म बेगिर्या पर खलिश यूँ ही सही?

ये पादाशे किस्मत आम है, समझाएं वो
पर दोशीना-ए-तीरगी ताउम्र हो, क्या यह वफूर नहीं?

मुसलसल शिकस्तो रेज़ा ये रूह होती हो
और किसी ग़मगुसार को इस आह की तौकीर नहीं?


(तर्के मरासिम = breaking of relationship, तिश्नगी = hope, दैरीना = past, दिलगीर = sad, पिन्दार = arrogance, सक़त = force/power, काविश = attempt, इनागीर = one holding the reins, पारीना = that which has passed by, बेगिर्या  = without tears, पादाश = punishment, दोशीना = bedroom, तीरगी = darkness, वफूर = extreme, मुसलसल = continuous,  शिकस्त = defeat, रेज़ा = pieces, ग़मगुसार= partner in sadness, तौकीर  = respect )

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