Monday, October 10, 2011

firaaq

तुमने भी इस अफ़साने को अजब सा मोड़ दिया है
ऐतबार से हमारा कुछ इस तरह रिश्ता तोड़ दिया है
जाने वाले तो चले ही जाते हैं मगर
तुमने सरे आम एक मरासिम को नीलाम किया है

हमने कब मजबूरियों का तुम्हारी हिसाब किया है
हर शर्ते वफ़ा की गिरफ्त से तुम्हे आज़ाद किया है
गर्दिशे अय्याम समझते रहे मगर
तुमने तो उल्फत की हर रस्म को उजाड़ दिया है

वस्ल से अब हमें इस हद तक बेज़ार कर दिया है
फ़िराक़ का ताउम्र हमें यूँ  मोमन कर दिया है
राहे निजात मिल भी जाये मगर
तुमने राह बदलते रहने में दानाई का सबक दिया है






2 comments:

Anonymous said...

superlike 'firaaq'....
awesome lines...
awesome depth...

nupur said...

Thanx Rajneesh, You are alwaz quick with your appreciation for my random musings..