Thursday, October 4, 2012

अकीदत-इ-आरां आरज़ू

दुनिया के फरेबों को घोर स्याह या कोर कर दें 
इल्ज़ाम की आवाजों को अन्सुना शोर कर दें 
ठहरे हुए लम्हों को बहता हुआ दरिया कर दें 
तंग ख्यालों को अज़्मे रौशन का ज़रिया कर दें

तन्हा सफ़र को बंदगी का बेनियाज़ रक्स कर दें
घिरते सायों को अजनबी हमसफ़र का अक्स कर दें
रास्तों के सराबों को हक़ीक़त  की नज़र कर दें
गुज़रे कारवाँ को भूल आगे की राह को माहज़र कर दें

वीरां अँधेरे कोनों को अकीदत-इ-आरां कर दें
घुटती हुई आवाजों को नग़मा इ-बहाराँ कर दें
शमा  की मंद लौ को वफ़ा का खुशनुमा नूर कर दें
मुन्किर को कलीसे की राह तक मजबूर कर दें 

दिल-शिकन लफ़्ज़ों के वार को दुआ कर दें
बदी के उफ़न्ते ग़ुबार को लोबान का धुआं कर दें
कुफ्र के अल्फाज़ को ऐतबार से अज़ान कर दें
ऐ खुदा हम हौसलों से नफरत को इबादत कर दें


(स्याह = black, kor = unseen, अज़्मे रौशन = the light within,  बेनियाज़ = carefree,  रक्स = dance,सराबों = mirage, माहज़र = whatever is present, अकीदत-इ-आरां = decorated with faith, नग़मा इ-बहाराँ = the song of celebration, मुन्किर = non-believer,  कलीसे = place of worship, दिल-शिकन = heart rending,
बदी=evil,  लोबान = incense sticks, कुफ्र = blasphemy,  अज़ान = call for prayer)

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