Tuesday, January 25, 2011

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तुम्हारी छोड़ी हुई,
स्याह सी रात को,
हम ऊँगली थामे,
सहर तक पहुंचाते रहे..
और दिल में दबी हुई,
अनकही ख्वाहिशों को,
 फ़साने बना, उसे
हर पल बहलाते रहे..
जब लगी बुझती हुई,
दूर चमकते सितारों को,
सपनों का देश बता,
उसे हौसला दिलाते रहे..
पर एक रोज़ थकी हुई,
छिटक कर इन हाथों को,
बोली सहमी सी, कांपते हुए,
'क्यूँ यूँ तनहा चलते रहें?
आज यह तम्मना हुई,
ढूंढ लूं उस चाँद को,
जो रोशन सफ़र करे,
राह मे मेरा  हमकदम रहे...
हर लम्हा कम होती हुई,
इस मुख़्तसर ज़िन्दगी को,
झूठी किस्से कहानियों से,
कब तक यूँ  बहलाते रहें?'
नादानी से भरी हुई,
सुनकर उसकी आरज़ू  को,
भरकर अपनी आगोश में,
देर तक उसे समझाते रहे..
है किस्मत तेरी  लिखी हुई,
चांदनी न समझ खुद को,
डरना क्या अंधेरों से,
हम तो उन्हें भी दिल में समाते रहे..
और फिर हारी हुई,
अपनी तनहा सी रात को,
लेकर अपनी बाँहों में,
उस पर प्यार बरसते रहे..

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