चलो आज एक ऐसा भी सौदा करते हैं
अपना हर्ज़, तुम्हारा फायदा करते हैं
जाते हुए मुसाफिर को जैसा नेमत देते हैं
तुम्हारी सारी अमानतें तुम्हे लौटा देते हैं
वो उस रात की पहली बात जो अफसाना बन गयी
वो उस सुबह की मुलाक़ात जो पहचान बन गयी
वो हर रोज़ का पल जो इंतज़ार का शहीद था
वो कुर्बत का एहसास जो हमेशा वहीद था
कुछ अनकहे वादे जो पेशानी की लकीर से थे
कुछ खामोश मंज़र जो राह के फकीर से थे
मेरी वो अधूरी ग़ज़लें जो वक़्त से उधार में थीं
मिटती हुई लकीरें जो नसीब के इंतज़ार में थीं
मजबूरियां जो हाथ मलती हुई मिट गयीं
तनहाइयाँ जो तुम्हारी राह देखती रह गयीं
वो सोच के दायरे जिन्हें तुम पार कर न सके
वो ख्वाब हमारे, जिन्हें हम क़त्ल कर न सके
इनसे दामन भर लो, ये सब अब तुम्हारे हैं
हमको तूफ़ान मंज़ूर, तुम्हारे सब किनारे हैं
बस तिजारत में इस अधूरे फ़साने को अंजाम दे जाओ
और इस दिल में जलती शमा को स्याह-इ-तमाम दे जाओ
3 comments:
Wow! This is so lovely, Nupur... enjoyed the read....
thanx shilpi, i visited ur blog too but i dont see the follow button
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