वो कारवां था, गुज़र ही गया है
वो मुसाफिर था, कहाँ ठहरा है
हम ही राहों में कुछ ऐसे अटके हैं
जैसे सदियों से रूहें यूँ ही भटके हैं
अब ना वफ़ा की हमको गुज़ारिश है
सावन नहीं, ये बमौसम की बारिश है
अब्र तो फितरत से होते आवारा हैं
इनको कब एक ही मुकाम गवारा हैं
ज़िन्दगी तू बस इतनी इजाज़त दे
अब इस दिल को ना कोई हसरत दे
उनको मुबारक रंगीन मेंह्फिलें हैं
हमारे बस यही बेमंज़िल काफिले हैं
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