मंजिल पर रहे नजर तुम्हारी हमेशा
पर मील के पत्थर का भी रहे अंदेशा
जब किसी नए मोड़ पर कदम तुम बढ़ाना
गुज़रे मुसाफिर को आखरी सलाम भी देना...
ज़िन्दगी भी अजीब से मंज़र दिखाती है
कभी गुलशन तो कभी बंजर हो जाती है
तुम इसके सराबों में ना भहक जाना
हकीकत के हर पल का हक़ पर चुका जाना..
उस गली से फिर गुज़रना मुश्किल होगा
उसकी पहचान से भी अब मुकारना होगा
हिजाब के पीछे छुपी शक्ल से इनकार कर देना
पर माज़ी की तस्वीरें सब रेज़ा रेज़ा कर जाना..
सरगोशी की बातें तो अब कहानियां हैं
ख्वाबों में ही बस मिलती रानाइयां हैं
ख्वाबों में ही बस मिलती रानाइयां हैं
तसव्वुर की आशनाई से किनारा कर लेना
रवानगी पर मगर महबूब को इशारा कर देना...
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