एक पाक हमसफ़र था मेरा
तुम्हारी आशनाई की रौशनी तले
कहीं हो गया जो जुदा मुझसे
हर एक शमा बुझा जाओ
पर मेरी वो तन्हाई लौटा जाओ
एक कोरा सा कागज़ था मेरा
तुम्हारे इकरार के जूनून से
लिखे उस पर कुछ फ़साने नए
हर एक हर्फ़ मिटा जाओ
पर मेरा वो अधूरा सा मन लौटा जाओ
एक थमा हुआ समुन्दर था मेरा
तुम्हारे एहसास के तूफ़ान से
उठे सैलाब जिसकी गहराई में
हर एक लहर दफना जाओ
पर मेरा ठहरा हुआ दिल लौटा जाओ
एक बेदाग़ सा आइना था मेरा
छिपाए हुए कई चेहरे मेरे
कुछ अंदाज़ तुमने भी देखे थे
हर एक तस्वीर मिटा जाओ
पर मेरा वो भूला अक्स लौटा जाओ
एक बेरंग सा उफक था मेरा
तुमने कुछ तारे जड़े
हमने भी शरर रौशन किये
हर एक महताब फूंक जाओ
पर मेरी वो स्याह सी रात लौटा जाओ
एक बहका हुआ अब्र था मेरा
दामन में मोती समेटे हुए
तुमने भी कुछ पिरोये थे
हर एक बूँद वो उड़ा जाओ
पर मेरा वो आवारा ख्वाब लौटा जाओ
No comments:
Post a Comment