एक बात से जो बात चली, आज यूँ ही
एक बात पर वो बात ख़त्म हुई
यूँ तो सरे-आम शुआ से रौशनी थी
पर किसी की राह में अब रात हुई
एक बात ख़त्म हुई ...
एक मुलाक़ात जो उंसियत बनी, आज यूँ ही
एक बात पर वो कुर्बत फ़ुर्क़त हुई
यूँ तो चाहत अब भी मुसलसल थी
पर किसी रब्त की हकीकत से मात हुई
एक बात ख़त्म हुई ...
एक परस्तिश की शमा रौशन थी, आज यूँ ही
एक नसीम-इ-सहर पर वो कुर्बान हुई
यूँ तो तूफानों से भी वो लड़ी थी
पर किसी काफिर से आज शिकस्त हुई
एक बात ख़त्म हुई ...
एक तिश्नगी दिल में पली थी, आज यूँ ही
एक दस्तक पर वो खुद ही बेघर हुई
यूँ तो आँख अब भी ख्वाबीदा थी
पर किसी की ज़िन्दगी मेहरूम-इ-इस्तिराहत हुई
एक बात ख़त्म हुई ...
( शुआ =beam of light, उंसियत= love, कुर्बत=relationship, कुर्बत=parting, फ़ुर्क़त=parting मुसलसल=continuing, रब्त =relation, परस्तिश=devotion, नसीम-इ-सहर=morning breeze, काफिर=infidel, शिकस्त=defeat, तिश्नगी=desire, ख्वाबीदा = dreaming,
मेहरूम-इ-इस्तिराहत=deprived of rest )
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