बहुत से लफ्ज़ हैं
बुतों से खामोश खड़े हैं
कोई बढ़ कर तुम तक ना पहुँचेंगे
तुम ख़ामोशी पढ़ लेते हो क्या ?
बारिश की बूँदें हैं
बंद खिड़की पर कुछ लिख जाती हैं
कोई हद्द पार कर तुम्हे नहीं छुएंगी
तुम यूँ भी नाम हो सकते हो क्या ?
हवा के झोंके हैं
आवारा से यूँ ही भटकते हैं
कोई शायद उड़ते हुए तुम्हे मिल जाएँगे
तुम हरारत क़ैद कर लेते हो क्या ?
शफ़क़ पर बिखरे अंजुम हैं
नूर की जुबां में कुछ कहते हैं
कोई रंजीदा से तुम्हारी ज़मीन पर भी गिरेंगे
तुम रौशनी को गिरफ्त कर सकते हो क्या ?
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