एक उजला सा फर्द मिला था
कुछ बिखरे हुए लफ्ज़ जोड़े
उनसे एक कहानी बुनी थी शायद..
आज उस वरक की कश्ती बना के
मौजों के हवाले कर आये हैं ..
एक बहका सा ख्वाब दिखा था
आवारा सा ख्यालों में भटकते
उसको दिल में पनाह मिली थी शायद..
आज उस सराब को पर बख्श के
आँधियों के हवाले कर आये हैं..
एक बुलंद सा हौसला पाया था
किसी रहबर की शबाहत लिए
उसे शजर समझ बोया था शायद..
आज उसकी हर जड़ उखाड़ के
तूफानों के हवाले कर आये हैं..
एक हमसफ़र चंद गाम संग चला था
रफ़ाक़त का इनागीर बने
उसमे अपना अक्स दिखा था शायद..
आज उस मजाज़े मरासिम को तोड़ के
वीरानों के हवाले कर आये हैं..
(फर्द = paper, वरक = sheet of paper, सराब = mirage, शबाहत = image, रहबर = guide, शजर = tree,
गाम = steps, रफ़ाक़त = friendship, इनागीर = steerer, अक्स = reflection , मजाज़े मरासिम = illusive relationship, इख्तिताम = ending )
2 comments:
Beautiful poem... loved it...
thanx shilpi
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