यह वक़्त का कैसा दैरीने दस्तूर है
ज़िन्दगी मुसलसल रिश्तों से मजबूर है
चारागरी लफ़्ज़ों की ज़र्ब पे यूँ तो ज़रूर है
पर जो रिसता है वो दिल में छिपा नासूर है
हिम्मत का कैसा ये बदगुमान गुरूर है
फलक लगे जिसे बस चंद कदम दूर है
आँखों में इम्काने उड़ान -ए- तुयूर है
पर क़दमों तले रेज़ा -ओ- ख्वाबे चूर है
परस्तिश का कैसा ये महवे सुरूर है
मुन्किर को भी बुत से वफ़ा मंज़ूर है
तीरगी किस्मत की कौन सी वफूर है
अब तो ज़ुल्मत में जुग्नूयों से भी नूर है
(दैरीना = old, मुसलसल = continuously, चारागरी = treatment, ज़र्ब = wound, इमकान = possibility, तुयूर = bird, रेज़ा = piece, परस्तिश = prayer, ज़ुल्मात, तीरगी = darkness)
चारागरी लफ़्ज़ों की ज़र्ब पे यूँ तो ज़रूर है
पर जो रिसता है वो दिल में छिपा नासूर है
हिम्मत का कैसा ये बदगुमान गुरूर है
फलक लगे जिसे बस चंद कदम दूर है
आँखों में इम्काने उड़ान -ए- तुयूर है
पर क़दमों तले रेज़ा -ओ- ख्वाबे चूर है
परस्तिश का कैसा ये महवे सुरूर है
मुन्किर को भी बुत से वफ़ा मंज़ूर है
तीरगी किस्मत की कौन सी वफूर है
अब तो ज़ुल्मत में जुग्नूयों से भी नूर है
(दैरीना = old, मुसलसल = continuously, चारागरी = treatment, ज़र्ब = wound, इमकान = possibility, तुयूर = bird, रेज़ा = piece, परस्तिश = prayer, ज़ुल्मात, तीरगी = darkness)
2 comments:
Lovely poem..enjoyed.... giving the translations of the difficult words is a great idea...
thanx shilpi, sometimes i wonder if it doesnt seem like so much of rambling?..
Post a Comment