जब कुर्ब का अंजाम बस कर्ब ही हो
तो खिल्वते ग़म ही मंज़ूर रहे
जिस की बज़्म में हर नज़्म महरूम हो
उस से बस फासलये हिज्र ही रहे
जिस उनवान में तारीक़ तमाम हो
ऐसी इब्तदा को तिश्नगी ही नसीब रहे
जब इबादत का खुदा बस संग ही हो
तो रुस्वते काफिर ही मंज़ूर रहे
जिसकी आश्नाई में इश्क बस मुन्तजिर ही हो
उस मरासिम को तुर्बत ही मंज़ूर रहे
जिस मंजिल का रास्ता ही गुम हो
उस पर काफिले क्यूँ कर गुज़र रहे
जब मुक़द्दर लकीरों में ही सिमटा हो
ऐसी किस्मत को दोज़ख ही मंज़ूर रहे
जो जज़्बात सुखन की कफस में ही हो
अब उसे वजूदे सराब ही मंज़ूर रहे
(कुर्ब = closeness, कर्ब = sorrow, खिलवाते ग़म = sorrow of seperation, उनवान = beginning,
संग = stone, मुन्तजिर = in waiting, तुर्बत = grave, सुखन = thoughts, कफस = prison, सराब = mirage)
उस पर काफिले क्यूँ कर गुज़र रहे
जब मुक़द्दर लकीरों में ही सिमटा हो
ऐसी किस्मत को दोज़ख ही मंज़ूर रहे
जो जज़्बात सुखन की कफस में ही हो
अब उसे वजूदे सराब ही मंज़ूर रहे
(कुर्ब = closeness, कर्ब = sorrow, खिलवाते ग़म = sorrow of seperation, उनवान = beginning,
संग = stone, मुन्तजिर = in waiting, तुर्बत = grave, सुखन = thoughts, कफस = prison, सराब = mirage)
2 comments:
In this age, when poetry seems to be lost, it is like a breath of fresh air to see someone pen poems...Another aspect which I enjoy tremendously, is enjoy the language ....
Thanx shilpi, my poetry (or random scribbling)is like my lifeline, feels gud to be appreciated tho'
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