तुमने भी इस अफ़साने को अजब सा मोड़ दिया है
ऐतबार से हमारा कुछ इस तरह रिश्ता तोड़ दिया है
जाने वाले तो चले ही जाते हैं मगर
तुमने सरे आम एक मरासिम को नीलाम किया है
हमने कब मजबूरियों का तुम्हारी हिसाब किया है
हर शर्ते वफ़ा की गिरफ्त से तुम्हे आज़ाद किया है
गर्दिशे अय्याम समझते रहे मगर
तुमने तो उल्फत की हर रस्म को उजाड़ दिया है
वस्ल से अब हमें इस हद तक बेज़ार कर दिया है
फ़िराक़ का ताउम्र हमें यूँ मोमन कर दिया है
राहे निजात मिल भी जाये मगर
तुमने राह बदलते रहने में दानाई का सबक दिया है
2 comments:
superlike 'firaaq'....
awesome lines...
awesome depth...
Thanx Rajneesh, You are alwaz quick with your appreciation for my random musings..
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