कल रात शमा से पूछा, यूँ ही,
है किसकी चाहत की जिसमे जलती हो तुम
कभी साहिल को देखा भी नहीं
फिर भी रात पार करती हो तुम..?
अँधेरे के दामन में छुपी हुई
किस उम्मीद को बहलाती हो तुम,
जबकि है साथ सिर्फ तन्हाई
फिर भी नाचती रहती हो तुम...?
कच्चे से धागे से बंधी हुई
किसके इश्क में तबाह होती तुम,
जबकि मिली है सिर्फ बेवफाई,
फिर भी यूँ लगन लगाती हो तुम...?
मोहब्बत का हक अदा करती हुई
कभी यूँ ही सहम जाती हो तुम,
आंधी जो आगोश में भरले कभी
वफ़ा की मिसाल ही कहलाती हो तुम...?
आज क्यूँ तुमसे मिलकर लगा यूँ ही
की जैसे जूनून की हो पहचान तुम,
मेरे जानिब भी हो ऐसी आशिकी
फना हूँ जिसपर, जैसे होती हो तुम...
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