अब उनकी बज़्म में एक शमा कम जलेगी
पर उनकी जज़्ब में ये आतिश ताउम्र रहेगी
ना सही उनको इल्म इस आशनाई का तो क्या
ये हरारत यूँ ही खामोश सुलगती रहेगी
हमसे कुर्ब का कारोबार हो ना सकेगा
उनसे हुजूमे किनारा हो ना सकेगा
ना सही साहिल से वस्ल की इनायत तो क्या
ये सफीना मौजों पर यूँ ही भटका करेगी
चाहत का सौदा उनसे जो सीखा होता
तो हमारे जज़्बातों पर भी पर्दा होता
ना सही उस बाज़ार में इसकी कीमत तो क्या
ये बे-नियाज़ आशिक़ी यूँ ही नीलाम हुआ करेगी
इस दिल के दरीचों से महताब ने मुह मोड़ लिया
आफताब ने भी अब्र का कफ़न ओढ़ लिया
ना सही ज़िया से अब कोई राबता तो क्या
मह्र की उस्तुवार लौ यूँ ही मुसलसल रौशन रहेगी
हमे ये मुहाल सफ़र तन्हा पार करना होगा
हर मोड़ पर बे-रहबर राहगुज़र को चुनना होगा
ना सही अर्श-ओ-फर्श में मंजिल का दीदार तो क्या
सबा से शफ़क़ तक यूँ ही मसाफ़त जारी रहेगी
(मसाफ़त = journey, बज़्म = gathering, जज़्ब = allurement, आतिश = fire, इल्म = awareness,
हरारत = passion, कुर्ब = closeness, साहिल = shore, वस्ल = union, इनायत = grace, सफीना = boat, बे-नियाज़ = carefree, दरीचों = windows, महताब = moonlight, आफताब = sun, अब्र = clouds, ज़िया = light, राबता = relationship, मह्र = love, उस्तुवार = strong, मुसलसल = continuous, मुहाल = difficult, बे-रहबर = without a guide, अर्श-ओ-फर्श = sky and earth, सबा = dawn, शफ़क़ = dusk, मसाफ़त = journey)